Create Stories: Dr Smita Agrawal on World Mental Health Day: क्रिएट स्टोरीज के वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे पर हुए वेबिनार में डॉ स्मिता अग्रवाल ने की चर्चा
वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे पर क्रिएट स्टोरीज सोशल वेलफेयर सोसाइटी के ऑनलाइन सेमिनार में साइकेट्रिस्ट डॉ स्मिता अग्रवाल ने चर्चा की ।
डॉ स्मिता अग्रवाल ने बताया की लॉकडाउन तो खुलता जा रहा है पर हम अपने अंदर ही लॉक होते जा रहे है एक शोध के अनुसार 10 में से 9 लोगों को लगता है की रोबोट या अनजान यानि डिजिटल फ्रेंड्स , गूगल , चैटिंग साइट्स , सिरी आदि से बात करके मन हल्का करना ज्यदा आसान है इंसान से बात करने से । अगर हम अपने आसपास नज़र डालें तो हर कोई फ़ोन पर किसी न किसी इंसान या रोबोट से बात करते हुए दिखेगा ।
ये बहुत नार्मल लगती हुई बात है लेकिन ये एक जड़ है मेंटल इशू और फिजिकल इशू की । ऐसी परिस्थिथि में इंसान अकेलापन , डिप्रेशन और शायद सुसाइड का शिकार भी हो सकते है । ये आजकल के बच्चों में ज्यदा देखने को मिल रहा है । स्ट्रेस कई चीजों की लत पैदा करती है जिससे काफी गंभीर बीमारियाँ पैदा होती है ।
हमे ये समझना ज़रूरी है की क्यूँ लोग आपस में असल दुनिया में बात नहीं कर पाते । अगर हम बच्चों की दुनिया को देखकर समझें तो काफी बच्चे अपने पेरेंट्स से बातें शेयर नही कर पातें इसकी वजह कुछ ये होती है –
· बच्चों की प्रॉब्लम को छोटा मनना
· बच्चों की प्रॉब्लम का मजाक बनाना
· बच्चों की हर बात पर उन्हें जज करना
· हमेशा उन्हें एडवाइस और सीख देते रहना
· बच्चों को सलूशन देकर बात खत्म कर देना
पेरेंट्स और बड़े याद रखिये अगर हमने बच्चों को सही समय रहते खुद के साथ कम्फर्ट फील नही कराया और ऑनलाइन जाकर बच्चे यूँ ही अपने मन की बात अजनबियों से शेयर करेंगे तो काफी बार वो साइबर क्राइम के शिकार हो जाते है । काफी बार ऑनलाइन बातें या चैटिंग उन्हें गलत रास्ते पर भी ले सकता है इसलिए समय है सतर्कता की ।
एक चीज़ जो ज़रूरी है घर पर बच्चों में और बाकी परिवार के सदस्यों के लिए ऐसा माहौल बनाए की वो बिना डरे अपने मन की बात शेयर कर पायें । ऐसा करने के लिए हमे दूसरों के नज़रिए को समझना बहुत ज़रूरी है । हमारे बच्चों को फॅमिली एनवायरनमेंट बनाने के लिए कुछ बातें सबको ध्यान रखनी चाहिए –
· बी अ गुड लिसनर ( शांति और ध्यान से बात सुने )
· किसी भी परेशानी को छोटा बताकर सुनने से इंकार न करनें , इगनोरे न करें
· ज़बरदस्ती किसी के पीछे न पड़े “अभी बताओ क्या बात है” उन्हें अपने कम्फर्ट के हिसाब से बताने दे
· घर पर फन एक्टिविटीज करें जैसे खाना बनाना , गार्डनिंग , फैमिली गेम्स , मूवी साथ देखना आदि ताकि बच्चा धीरे धीरे खुलने लगेगा
· कभी भी किसी को जज न करें
पेरेंट्स अपने बच्चों को खुल कर बोलने दे , उनके एक्सप्रेशंस को समझे , उनकी जिज्ञासा को स्वीकार करें । इससे बच्चे का भय समाप्त होगा और जीवन के हर उतार चढाव में वे अपनी बात को आज़ादी से घर परिवार और समाज के सामने रखने में सक्षम होंगे । जैसे हम मुश्किलों से डरते है , ये समझना भूलकर की ये मुश्किलें हमे बेहतर बनाती जा रही है अगर हम शांत मन से सोचेंगे और समझेंगे तो हमे शायाद समझ आएगा की डरते हम मैथ्स से नहीं बल्कि हम गलती होने से डरते और घबराते है । हमे एग्जाम देने से इतना डर नही लगता जितना बुरा रिजल्ट से लगता है । हमे शायद गलत होने से डर न लगे अगर गलत होने पर हमे सजा और मजाक बनाने की जगह सीख मिले । ये सब बच्चे शेयर नही कर पाते और फिर वो डिजिटल फ्रेंड्स से शेयर करने लगते है जो की सेफ नही है ।
जब हम स्ट्रेस्ड होते है तब हमारी बॉडी में “कोर्टिसोल” रिलीज़ होता है जिससे हम फटाफट रियेक्ट करते है, पर अगर हम हमेशा स्ट्रेस्ड रहेंगे तो हमारी बाकी बॉडी के पार्ट्स में ब्लड फ्लो लिमिटेड होता है और ओवरआल हमारे बॉडी के फंक्शन में प्रॉब्लम आने लगती है ।
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डॉ स्मिता अग्रवाल ने बताया की लॉकडाउन तो खुलता जा रहा है पर हम अपने अंदर ही लॉक होते जा रहे है एक शोध के अनुसार 10 में से 9 लोगों को लगता है की रोबोट या अनजान यानि डिजिटल फ्रेंड्स , गूगल , चैटिंग साइट्स , सिरी आदि से बात करके मन हल्का करना ज्यदा आसान है इंसान से बात करने से । अगर हम अपने आसपास नज़र डालें तो हर कोई फ़ोन पर किसी न किसी इंसान या रोबोट से बात करते हुए दिखेगा ।
ये बहुत नार्मल लगती हुई बात है लेकिन ये एक जड़ है मेंटल इशू और फिजिकल इशू की । ऐसी परिस्थिथि में इंसान अकेलापन , डिप्रेशन और शायद सुसाइड का शिकार भी हो सकते है । ये आजकल के बच्चों में ज्यदा देखने को मिल रहा है । स्ट्रेस कई चीजों की लत पैदा करती है जिससे काफी गंभीर बीमारियाँ पैदा होती है ।
हमे ये समझना ज़रूरी है की क्यूँ लोग आपस में असल दुनिया में बात नहीं कर पाते । अगर हम बच्चों की दुनिया को देखकर समझें तो काफी बच्चे अपने पेरेंट्स से बातें शेयर नही कर पातें इसकी वजह कुछ ये होती है –
· बच्चों की प्रॉब्लम को छोटा मनना
· बच्चों की प्रॉब्लम का मजाक बनाना
· बच्चों की हर बात पर उन्हें जज करना
· हमेशा उन्हें एडवाइस और सीख देते रहना
· बच्चों को सलूशन देकर बात खत्म कर देना
पेरेंट्स और बड़े याद रखिये अगर हमने बच्चों को सही समय रहते खुद के साथ कम्फर्ट फील नही कराया और ऑनलाइन जाकर बच्चे यूँ ही अपने मन की बात अजनबियों से शेयर करेंगे तो काफी बार वो साइबर क्राइम के शिकार हो जाते है । काफी बार ऑनलाइन बातें या चैटिंग उन्हें गलत रास्ते पर भी ले सकता है इसलिए समय है सतर्कता की ।
एक चीज़ जो ज़रूरी है घर पर बच्चों में और बाकी परिवार के सदस्यों के लिए ऐसा माहौल बनाए की वो बिना डरे अपने मन की बात शेयर कर पायें । ऐसा करने के लिए हमे दूसरों के नज़रिए को समझना बहुत ज़रूरी है । हमारे बच्चों को फॅमिली एनवायरनमेंट बनाने के लिए कुछ बातें सबको ध्यान रखनी चाहिए –
· बी अ गुड लिसनर ( शांति और ध्यान से बात सुने )
· किसी भी परेशानी को छोटा बताकर सुनने से इंकार न करनें , इगनोरे न करें
· ज़बरदस्ती किसी के पीछे न पड़े “अभी बताओ क्या बात है” उन्हें अपने कम्फर्ट के हिसाब से बताने दे
· घर पर फन एक्टिविटीज करें जैसे खाना बनाना , गार्डनिंग , फैमिली गेम्स , मूवी साथ देखना आदि ताकि बच्चा धीरे धीरे खुलने लगेगा
· कभी भी किसी को जज न करें
पेरेंट्स अपने बच्चों को खुल कर बोलने दे , उनके एक्सप्रेशंस को समझे , उनकी जिज्ञासा को स्वीकार करें । इससे बच्चे का भय समाप्त होगा और जीवन के हर उतार चढाव में वे अपनी बात को आज़ादी से घर परिवार और समाज के सामने रखने में सक्षम होंगे । जैसे हम मुश्किलों से डरते है , ये समझना भूलकर की ये मुश्किलें हमे बेहतर बनाती जा रही है अगर हम शांत मन से सोचेंगे और समझेंगे तो हमे शायाद समझ आएगा की डरते हम मैथ्स से नहीं बल्कि हम गलती होने से डरते और घबराते है । हमे एग्जाम देने से इतना डर नही लगता जितना बुरा रिजल्ट से लगता है । हमे शायद गलत होने से डर न लगे अगर गलत होने पर हमे सजा और मजाक बनाने की जगह सीख मिले । ये सब बच्चे शेयर नही कर पाते और फिर वो डिजिटल फ्रेंड्स से शेयर करने लगते है जो की सेफ नही है ।
जब हम स्ट्रेस्ड होते है तब हमारी बॉडी में “कोर्टिसोल” रिलीज़ होता है जिससे हम फटाफट रियेक्ट करते है, पर अगर हम हमेशा स्ट्रेस्ड रहेंगे तो हमारी बाकी बॉडी के पार्ट्स में ब्लड फ्लो लिमिटेड होता है और ओवरआल हमारे बॉडी के फंक्शन में प्रॉब्लम आने लगती है ।
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