Coronavirus causes vision loss, आई केयर में डॉ प्रणय सिंह ने चर्चा की एवं पोस्ट कोरोना मरीजों को किया सतर्क in Create Stories Webinar
आई केयर पर ऑनलाइन सेमिनार का आयोजन क्रिएट स्टोरीज सोशल वेलफेयर सोसाइटी द्वारा किया गया । आई सर्जन डॉ प्रणय सिंह ने इस खास विषय पर चर्चा की ।
डॉ प्रणय सिंह ने बताया की आँखों का हमे खास ध्यान रखना चाहिए एवं इसमें आ रही जरा सी तकलीफ को भी इगनोरे नही करें । अगर आप दिनभर टीवी, कंप्यूटर,मोबाइल स्क्रीन के सामने बैठते है व किसी अन्य वजह से भी आपको आंखों में थकान और भारीपन महसूस होती है , तो जरूरत है कि आप आंखों की उचित देखभाल करें ।
इस महामारी की वजह से ज्यदातर कार्य जैसे क्लासेज , वर्क फ्रॉम होम आदि सब ऑनलाइन चल चल रहा है । बच्चे आठ से दस घंटे तक का समय इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में बिताते हैं , वे या तो ऑनलाइन क्लासेज कर रहे हैं या कार्टून देख रहे हैं या वीडियो गेम्स खेल रहे हैं , माता-पिता को लगता है कि यह उन्हें व्यस्त रखने का सबसे बेहतर तरीका है , लेकिन इतना ज्यादा वक्त इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में बिताने से आंखों को नुकसान पहुंचता है । स्क्रीन के सामने इतना वक़्त बिताने से बच्चों की आंखों पर इसका असर पड़ रहा है । लॉकडाउन के दौरान बच्चों की आंखों को बहुत नुकसान पहुंचा है । वहीं पिछले कुछ सप्ताह में 40 फीसदी से अधिक बच्चों को आंखों में तकलीफ और दृष्टि से जुड़ी कई समस्याओं का सामना करना पड़ा है ।
अपर्याप्त नींद , आँखों की थकान के लिए जिम्मेदार होती है । आँखों की थकान के लक्षणों में फोकस करने में परेशानी, अत्यधिक आंसू आना या आँखें सूखना, धुंधली दृष्टी या दोहरी दृष्टी, प्रकाश असंवेदनशीलता, या गर्दन, कन्धों, या पीठ में दर्द रहना शामिल हैं । हर रात पर्याप्त नींद लेने से आँखों की थकान से बचा जा सकता है एवं सोने के एक घंटे पहले से स्क्रीन से दूरी बना ले ।
लम्बे समय तक कंप्यूटर स्क्रीन पर ऊपर और नीचें देखते रहने से आपकी आँखों पर अतिरिक्त ज़ोर या खिंचाव पड़ सकता है । खुद को और कंप्यूटर की स्क्रीन को ऐसी स्थिति में रखें जिससे आप स्क्रीन को बिलकुल सीधे देख सकें ।
डॉ प्रणय सिंह ने सभी को एक मेसेज दिया की ऐसे लोग जो कोरोना से रिकवर कर गये है जिनकी हेल्थ अच्छी है वे ध्यान दे की हमे जांच करने में आजकल ऐसे केस बहुत मिल रहे है जिनको पोस्ट कोरोना यानि कोरोना से ठीक होने के बाद आँखों की रौशनी अचानक चली गयी है , उसकी वजह होती है थ्रोम्बोएम्बोलिस्म यानी ब्लड के खून के थक्के आँखों की नसों में जाके जमा हो जाते है जिससे आँखों की ब्लड सप्लाई खत्म हो जाती है और रौशनी चली जाती है । यह बहुत ज़रूरी है की आपको जो कोरोना का ट्रीटमेंट दिया गया है उस गाइडलाइन्स को फॉलो करिए एवं दवाइयां जितने दिन की जैसे लेना का बोला गया हो उसे फॉलो करें एवं ट्रीटमेंट का पूरा कोर्स करिए । पोस्ट कोरोना एक बार आँखों को जांच ज़रूर करवाइए ।
यदि हम आँखों के मिथ एंड फैक्ट्स के बारे में बात करें तो ऐसा नही होता की यदि हमारी आँखों में कोई तकलीफ नही है तो हम नियमित जांच न कराएँ ऐसा बिलकुल गलत है , पहला आई चेक जब बच्चा दो साल का होता है तब होना चाहिए क्यूंकि कुछ बीमारियाँ छोटे बच्चों को होती है और वो बता नही बाते और बाद में तकलीफ बड़ी हो सकती है । चालीस साल की उम्र जब होती है तब आँखों की जांच होनी ही चाहिए क्यूंकि कांचबिंदु या ग्लौकोमा वो चालीस की उम्र में होना चालू हो जाता है क्यूंकि इसके सिम्पटम्स कुछ भी नही होते ।
आई केयर टिप्स –
· बहुत दूर के पदार्थों या दृश्यों को देर तक नजर गड़ाकर न देखें , तेज धूप से चमकते दृश्य को न देखें , कम रोशनी में लिखना , पढ़ना व बारीक काम न करें ।
· कम से कम ढाई लीटर पानी ज़रूर पियें ।
· 1 मिनट में कम से कम 12 से 15 बार आंखों की पलकें झपकाते रहें , एैसा करने से आंखें रूखी नहीं रहती हैं ।
· लेटकर या झुककर पढ़ना भी आंखों के लिए ठीक नहीं है , पढ़ते समय प्रकाश पीछे से आना चाहिए ।
· नींद, आंखों में भारीपन, जलन या थकान महसूस हो तो काम तत्काल आंखों को बंद कर उन्हें थोड़ा विश्राम दें ।
· आंखों को धूल, धुएं, धूप और तेज हवा से बचाना चाहिए । ऐसे वातावरण में ज्यादा देर न ठहरें । लगातार आंखों से काम ले रहे हों तो बीच में 1-2 बार आंखें बंद कर, आंखों पर हथेलियां हलके-हलके दबाव के साथ रखकर आंखों को आराम देते रहें ।
· काम के बीच-बीच में आंखें बंदकर बैठें । 10 सेकंड के लिए ऐसा करें और फिर काम करें! आंखें बंद करने से न सिर्फ आंखों को, बल्कि मन को भी सुकून मिलत है ।
कुछ मिथ की बाते करें की टेलीविज़न देखने से आँखों के चश्मे का नंबर आता है ऐसा नही है , आँखों में वीकनेस आये , सर में भारीपन होगा लेकिन चश्मे का नंबर नही आएगा । लेकिन जब बच्चा टेलीविज़न करीब से देखे तो तुरंत उसके आँखों की जांच कराएँ । डायबिटीज या हाइपरटेंशन नही है तो मोतियाबिंद नही होगा यह गलत है क्यूंकि मोतियाबिंद एक उम्र की वजह से होने वाला आँखों के अंदर बदलाव है जो हर किसी होता है किसी को पचास साल में किसी को साठ या अस्सी साल में , यह आँखों के अंदर होना वाला एक नेचुरल बदलाव है जो होगा ही होगा , उम्र अलग हो सकती है ।
डॉ प्रणय सिंह ने बताया की आँखों का हमे खास ध्यान रखना चाहिए एवं इसमें आ रही जरा सी तकलीफ को भी इगनोरे नही करें । अगर आप दिनभर टीवी, कंप्यूटर,मोबाइल स्क्रीन के सामने बैठते है व किसी अन्य वजह से भी आपको आंखों में थकान और भारीपन महसूस होती है , तो जरूरत है कि आप आंखों की उचित देखभाल करें ।
इस महामारी की वजह से ज्यदातर कार्य जैसे क्लासेज , वर्क फ्रॉम होम आदि सब ऑनलाइन चल चल रहा है । बच्चे आठ से दस घंटे तक का समय इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में बिताते हैं , वे या तो ऑनलाइन क्लासेज कर रहे हैं या कार्टून देख रहे हैं या वीडियो गेम्स खेल रहे हैं , माता-पिता को लगता है कि यह उन्हें व्यस्त रखने का सबसे बेहतर तरीका है , लेकिन इतना ज्यादा वक्त इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में बिताने से आंखों को नुकसान पहुंचता है । स्क्रीन के सामने इतना वक़्त बिताने से बच्चों की आंखों पर इसका असर पड़ रहा है । लॉकडाउन के दौरान बच्चों की आंखों को बहुत नुकसान पहुंचा है । वहीं पिछले कुछ सप्ताह में 40 फीसदी से अधिक बच्चों को आंखों में तकलीफ और दृष्टि से जुड़ी कई समस्याओं का सामना करना पड़ा है ।
अपर्याप्त नींद , आँखों की थकान के लिए जिम्मेदार होती है । आँखों की थकान के लक्षणों में फोकस करने में परेशानी, अत्यधिक आंसू आना या आँखें सूखना, धुंधली दृष्टी या दोहरी दृष्टी, प्रकाश असंवेदनशीलता, या गर्दन, कन्धों, या पीठ में दर्द रहना शामिल हैं । हर रात पर्याप्त नींद लेने से आँखों की थकान से बचा जा सकता है एवं सोने के एक घंटे पहले से स्क्रीन से दूरी बना ले ।
लम्बे समय तक कंप्यूटर स्क्रीन पर ऊपर और नीचें देखते रहने से आपकी आँखों पर अतिरिक्त ज़ोर या खिंचाव पड़ सकता है । खुद को और कंप्यूटर की स्क्रीन को ऐसी स्थिति में रखें जिससे आप स्क्रीन को बिलकुल सीधे देख सकें ।
डॉ प्रणय सिंह ने सभी को एक मेसेज दिया की ऐसे लोग जो कोरोना से रिकवर कर गये है जिनकी हेल्थ अच्छी है वे ध्यान दे की हमे जांच करने में आजकल ऐसे केस बहुत मिल रहे है जिनको पोस्ट कोरोना यानि कोरोना से ठीक होने के बाद आँखों की रौशनी अचानक चली गयी है , उसकी वजह होती है थ्रोम्बोएम्बोलिस्म यानी ब्लड के खून के थक्के आँखों की नसों में जाके जमा हो जाते है जिससे आँखों की ब्लड सप्लाई खत्म हो जाती है और रौशनी चली जाती है । यह बहुत ज़रूरी है की आपको जो कोरोना का ट्रीटमेंट दिया गया है उस गाइडलाइन्स को फॉलो करिए एवं दवाइयां जितने दिन की जैसे लेना का बोला गया हो उसे फॉलो करें एवं ट्रीटमेंट का पूरा कोर्स करिए । पोस्ट कोरोना एक बार आँखों को जांच ज़रूर करवाइए ।
यदि हम आँखों के मिथ एंड फैक्ट्स के बारे में बात करें तो ऐसा नही होता की यदि हमारी आँखों में कोई तकलीफ नही है तो हम नियमित जांच न कराएँ ऐसा बिलकुल गलत है , पहला आई चेक जब बच्चा दो साल का होता है तब होना चाहिए क्यूंकि कुछ बीमारियाँ छोटे बच्चों को होती है और वो बता नही बाते और बाद में तकलीफ बड़ी हो सकती है । चालीस साल की उम्र जब होती है तब आँखों की जांच होनी ही चाहिए क्यूंकि कांचबिंदु या ग्लौकोमा वो चालीस की उम्र में होना चालू हो जाता है क्यूंकि इसके सिम्पटम्स कुछ भी नही होते ।
आई केयर टिप्स –
· बहुत दूर के पदार्थों या दृश्यों को देर तक नजर गड़ाकर न देखें , तेज धूप से चमकते दृश्य को न देखें , कम रोशनी में लिखना , पढ़ना व बारीक काम न करें ।
· कम से कम ढाई लीटर पानी ज़रूर पियें ।
· 1 मिनट में कम से कम 12 से 15 बार आंखों की पलकें झपकाते रहें , एैसा करने से आंखें रूखी नहीं रहती हैं ।
· लेटकर या झुककर पढ़ना भी आंखों के लिए ठीक नहीं है , पढ़ते समय प्रकाश पीछे से आना चाहिए ।
· नींद, आंखों में भारीपन, जलन या थकान महसूस हो तो काम तत्काल आंखों को बंद कर उन्हें थोड़ा विश्राम दें ।
· आंखों को धूल, धुएं, धूप और तेज हवा से बचाना चाहिए । ऐसे वातावरण में ज्यादा देर न ठहरें । लगातार आंखों से काम ले रहे हों तो बीच में 1-2 बार आंखें बंद कर, आंखों पर हथेलियां हलके-हलके दबाव के साथ रखकर आंखों को आराम देते रहें ।
· काम के बीच-बीच में आंखें बंदकर बैठें । 10 सेकंड के लिए ऐसा करें और फिर काम करें! आंखें बंद करने से न सिर्फ आंखों को, बल्कि मन को भी सुकून मिलत है ।
कुछ मिथ की बाते करें की टेलीविज़न देखने से आँखों के चश्मे का नंबर आता है ऐसा नही है , आँखों में वीकनेस आये , सर में भारीपन होगा लेकिन चश्मे का नंबर नही आएगा । लेकिन जब बच्चा टेलीविज़न करीब से देखे तो तुरंत उसके आँखों की जांच कराएँ । डायबिटीज या हाइपरटेंशन नही है तो मोतियाबिंद नही होगा यह गलत है क्यूंकि मोतियाबिंद एक उम्र की वजह से होने वाला आँखों के अंदर बदलाव है जो हर किसी होता है किसी को पचास साल में किसी को साठ या अस्सी साल में , यह आँखों के अंदर होना वाला एक नेचुरल बदलाव है जो होगा ही होगा , उम्र अलग हो सकती है ।
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