Create Stories: Dr Amit Bang क्रिएट स्टोरीज के वेबिनार में डॉ अमित बंग ने की चैलेंजेस ऑफ़ ई लर्निंग इन किड्स पर चर्चा
चैलेंजेस ऑफ़ ई लर्निंग इन किड्स विषय पर ऑनलाइन सेमिनार का आयोजन क्रिएट स्टोरीज सोशल वेलफेयर सोसाइटी द्वारा किया गया । इस विषय पर पीडीअट्रिशन डॉ अमित बंग ने सभी से चर्चा की ।
डॉ अमित बंग ने बताया की पिछले पांच छह महीनों में हमारी और बच्चों की लाइफ में काफी बदलाव आये है और देखा जाये तो पेरेंट्स से ज्यदा बच्चों ने एडजस्ट किया है । अब उनके लिए उनका स्कूल एक छोटा सा स्क्रीन रह गया है जिससे उनके फिजिकल , सायकोलॉजिकल और ऑप्थमॉलजिकल (आँखो) पर असर पड़ा है ।
फिजिकल एक्टिविटी कम होने के कारण बच्चों का वेट गेन तेज़ी से हो रहा है , कॉन्स्टिपेशन के केस पहले से काफी अधिक, दुगने के ज्यदा आ रहे है क्यूंकि जो स्कूल की मील पर डिपेंड थे जहाँ उन्हें बैलेंस डाइट मिल जाता था और घर पर बच्चे ज्यदा चूज़ी हो जाते है एवं उनका रूटीन भी बदल गया है जिससे कॉन्स्टिपेशन के केस ज्यदा बढ़ रहे है क्यूंकि पहले सुबह से रात तक की दिनचर्या उनकी तय रहती थी इसलिए पेरेंट्स अभी भी उनकी दिनचर्या फिक्स करें और उन्हें बैलेंस डाइट और भरपूर पानी दीजिये ।
बच्चों के स्लीप साइकल की बात करें तो स्क्रीन टाइम और स्लीप टाइम के बीच एक घंटे का गैप होना ही चाहिए जो की खत्म हो गया क्यूंकि बच्चो की पढ़ाई से लेकर होमवर्क भी स्क्रीन पर डिपेंड है एवं इसके अलावा भी बच्चो को एंटरटेनमेंट तो चाहिए जो की वापस से उन्हें स्क्रीन पर ले जाता है जैसे गेम्स , कार्टून्स देखना आदि जिससे उनका स्क्रीन टाइम हर एक्टिविटी में 100 परसेंट बढ़ा है जिससे उनका स्लीप साइकिल इफ़ेक्ट हुआ है ।
स्क्रीन टाइम करेक्ट करने के लिए पेरेंट्स खुद फिजिकल एक्सरसाइज करिए और बच्चों को भी कराएँ ग्रुप एक्सरसाइज हमेशा बेहतर रिजल्ट देती है जिसमे वे समय नही देखते एवं फॅमिली फन टाइम के साथ फिजिकल एक्टिविटी भी हो जाती है जैसे स्किप्पिंग , डांस , बड़े बच्चो को पुशप्स , आदि एवं धीरे धीरे उनकी समय और इंटेंसिटी बढाए ।
अगर बच्चा 10 बजे सोता है तो पेरेंट्स इस बात का ध्यान रखें की 9 बजे के बाद वो किसी प्रकार की स्क्रीन से दूर रहें क्यूंकि ब्लू लाइट जो स्क्रीन से आती है एवं स्लीप को इफ़ेक्ट करता है , क्यूंकि फिजिकल एक्टिविटी भी कम है तो बच्चा थक के भी नही सो पाता , इसलिए पेरेंट्स इसको सीरियस लें नही तो बच्चा यही दिनचर्या अडॉप्ट कर लेगा जिससे आगे चल के काफी दिक्कत आएगी । स्लीपिंग डिसऑर्डर से बच्चो में चिडचिडापन काफी हद तक बढ़ जाता है ।
बच्चों में काफी मानसिक बदलाव भी आये क्यूंकि बच्चे स्कूल में सिर्फ पढाई करने नही जाते थे क्यूंकि स्कूल में लाइफ स्किल डेवलप होती थी जैसे शेयरिंग सीखते थे , कम्युनिकेशन स्किल्स , फ्रेंड बनाना , सोशल होना , मनपसंद एक्टिविटी में भाग लेना , स्पोर्ट्स आदि ।
बात करें उनके थॉट , प्रॉब्लम शेयर करना , स्ट्रेस से डील करना आदि जो की एकदम से बंद है और कई बार वे पेरेंट्स से नही शेयर कर पाते क्यूंकि वे फ्रेंड्सजोन में ही कम्फ़र्टेबल होते है इसलिए अभी हम पेरेंट्स को बच्चों के फ्रेंड्स का रोल भी अदा करना होगा उन्हें खुद के साथ कम्फ़र्टेबल करना करना क्यूंकि काफी बच्चे एंग्जायटी फील करते है और शुरुवाती डिप्रेशन भी उनमे आ रहा है क्यूंकि बच्चो की चिंता हमे पता नही चल पाती । अगर आपके बच्चे चिडचिडे , बच्चे अपनी पसंद को नापसंद करने लगे , नेचर में बड़ा बदलाव दिखे , बच्चा गुमसुम रहे , शैतानी करना अचानक बंद कर दे आदि तो आप सावधान हो क्यूंकि यह एंग्जायटी या शुरुवाती डिप्रेशन के लक्षण हो सकते है ।
पेरेंट्स दिन भर में से कम से कम आधा घंटा क्वालिटी फॅमिली टाइम निकालिए , बच्चो से साथ समय बिताइए गेम्स खेले , स्टोरीज शेयर करें , खाना साथ खाएं बिना स्क्रीन के , इन छोटी छोटी एक्टिविटी से बच्चा धीरे धीरे कम्फ़र्टेबल होता है । एक शोध के अनुसार पाया गया है की 50 परसेंट से ज्यदा बच्चों में इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की लत लगना शुरू हो गयी है जिससे दूर होते ही बच्चे में एंग्जायटी या चिडचिडापन होता है । साथ ही अब बच्चों में नो मोबाइल फोबिया भी पाया जा रहा है जिसमे बच्चा मोबाइल स्क्रीन से दूर नही रह पा रहा । कारण है बच्चो का फ्री टाइम में भी स्क्रीन यूज़ करना इसको रिप्लेस करकें फॅमिली टाइम में कन्वर्ट करें उनके दोस्त बने ।
जो हमने सोचा नही था या कोई रेडी नही था क्यूंकि फिजिकल औए मेंटल प्रॉब्लम तो बच्चों में होती रहती है लेकिन ऑप्थमॉलजिकल प्रॉब्लम की समस्या में तीन गुना इझाफा हुआ है । इसमें दो बेसिक प्रॉब्लम आती है स्क्रीन पे ज्यदा देखने से पहला डिजिटल स्ट्रेन जिससे बच्चों को धुन्दला दिख सकता है , डबल विज़न और सर दर्द हो सकता है और दूसरा कंप्यूटर विज़न सिंड्रोम होता है यह इसलिए होता है क्यूंकि बच्चे आँखे नही ब्लिंक करते जिससे आँखों में ड्राईनेस होता है और आंके थक जाती है । इसलिए पेरेंट्स ध्यान रखें की प्रॉपर लाइट रहे रूम में , बड़े स्क्रीन पर पढने दे , एंटीग्लेयर स्क्रीन यूज़ करें , स्क्रीन का ब्राइटनेस कम और कंट्रास्ट ज्यदा रखे जिससे बच्चों की आँखों पर ज्यदा असर नही आएगा ।
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